व्यक्तिगत जानकारी | |
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नाम | बृजभूषण शरण सिंह |
पद | सांसद, गोंडा (उत्तर प्रदेश) |
जन्म तिथि | 08/01/1957 |
जन्म स्थान | बिसनोहरपुर, जिला- गोंडा (उप्र) |
पिता का नाम | स्व. जगदम्बाप शरण सिंह |
माता का नाम | प्यावरी देवी सिंह |
वैवाहिक स्थिति | |
विवाह की तिथि | 11/06/1981 |
पत्नी का नाम | केतकी देवी सिंह |
पुत्र | 2 |
पुत्री | 1 |
शिक्षा | |
योग्यता | एम.ए., एलएल.बी. साकेत महाविद्यालय, अवध विश्वयविद्यालय, फैजाबाद (उ0प्र) से शिक्षा ग्रहण की व्यवसाय कृषक, सामाजिक कार्यकर्ता, संगीतकार, खिलाड़ी |
स्थायी पता | ग्राम एवं डाकघर-बिसनोहरपुर, जिला- गोंडा-208 002 (उत्तर प्रदेश) |
बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश के गोंडा संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं। वह पांचवीं बार निर्वाचित हुए हैं जो उनके, संगठनात्मक गतिविधियों को निभाने के लिए व्यापक अनुभव और जमीनी मुद्दों पर एक प्रचलित नेता के रूप में छवि को दर्शाता है। |
बृजभूषण शरण सिंह का जन्म 8 जनवरी 1957 को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले अंतर्गत एक गांव बिसनोहरपुर में हुआ। वह गांव के चौपाल से लेकर इंटरनेट तक पर छाने वाले लोकप्रिय नेता माने जाते हैं जिनका लक्ष्य विकासशील, सकारात्मक और नई पीढ़ी की व्यवहारिक कुशल राजनीति का प्रसार करना है। वह 2014 के लोकसभा चुनाव में चुनाव प्रचार के लिए नरेंद्र मोदी के विश्वनीय नेताओं में से जाने जाते हैं।
स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय चंद्रभान शरण सिंह के चचेरे पौत्र बृजभूषण शरण सिंह को राजनीति और लोककल्याणकारी विचारधारा विरासत में मिली। उनके चचेरे बाबा विधायक थे। वह छह भाई हैं, लेकिन 4 भाइयों की असमय मृत्यु हो गई। उस वक़्त बृजभूषण जी की आयु मात्र 10-12 वर्ष थी। तभी से सबसे बड़े भाई की ऊंगली पकड़कर वो अपने खेत भी जाते और शिक्षा-दीक्षा भी हासिल की। लेकिन कुदरत को कुछ और मंजूर था, तीन और भाइयों की मृत्यु दो-तीन वर्ष के अंतराल में ही हो गई। वह अकेले पड़ गए, एक अजीब सा डर उनके अंदर समा गया।
बृजभूषण शरण सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में और आठवीं तक की शिक्षा गोंडा जिले में ही श्रीगांधी विद्यालय इंटर कॉलेज, नवाबगंज में हुई।
चार भाइयों की आकस्मिक मृत्यु के चलते गांव में कुछ पट्टीदारों से दुश्मनी बढ़ चुकी थी और उन पट्टीदारों को संरक्षण देने का काम उस समय के राजा का हुआ करता था जो राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली थे। इसका कारण था कि स्व. चन्द्रभान शरण सिंह अपने राजनीतिक जीवन में सामंतवादी घटनाओं का पुरजोर विरोध किया करते थे। जिस वजह से राजा और स्वर्गीय चंद्रभान शरण सिंह में वैचारिक मतभेद पैदा हो गए। इसके चलते राजा ने बिसनोहरपुर गांव के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों को अपने संपर्क में लिया और उनके ही माध्यम से परिवार का विरोध करते थे। ऐसी स्थिति बन गई थी की श्रीगाँधी विद्यालय इंटर कॉलेज जो उनके गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर पड़ता है, उस कॉलेज में जाने के लिए भी परेशानी होती थी, क्योंकि कई बार जान से मारने की नियत से उनके ऊपर हमले हुए और उन्होंने झील में कूदकर स्वयं की रक्षा की। आये दिन ऐसी होती घटनाओं को देखकर परिवार के लोगों ने बृजभूषण शरण सिंह को उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गोरखपुर के चौरी- चौरा में सन् 1972 में उनके मामा के यहाँ पढ़ने के लिए भेज दिया। उनके मामा एक सरकारी कर्मचारी थे। बृजभूषण शरण सिंह के पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद और यहाँ तक कि उस समय के छात्र नेता (स्व. रविंदर सिंह, गुड्डू जैस्वाल, शीतल पांडे, विश्कर्मा द्विवेदी, स्वर्गीय बलवंत सिंह) के साथ अच्छे व्यक्तिगत संपर्क बन चुके थे।
बृजभूषण शरण सिंह जी जब महज़ 16 वर्ष के थे तो पारिवारिक दुश्मनी के चलते 1974 में पट्टीदारों द्वारा उनका घर गिरा दिया गया, उनके घर पर हमला करवा दिया गया। दोनों तरफ से मुकदमा लिखा गया। बृजभूषण शरण सिंह, उनके पिता, चाचा सहित पूरे परिवार को गिरफ्तार किया गया और उसी समय 307 का झूठा मुकदमा 1974 में दर्ज किया गया। इस घटना से युवा अवस्था के बृजभूषण शरण सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और समाजसेवा की भावना मन में उत्पन्न हो गयी। इसी दौरान एक और प्रकरण हुआ जिसने उन्हें छात्र नेता बना दिया। गर्मी की छुट्टियों में वो अपने गांव आए थे तो कॉलेज में दाखिला लेने के उद्देश्य से साकेत महाविद्यालय घूमने गए। वहाँ कुछ लड़के लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार कर रहे थे। यह देखकर बृजभूषण ने विरोध किया और लड़ाई की नौबत आ गई। उन्होंने सभी मनचलों को करारा जवाब दिया। इस घटना के बाद कॉलेज के छात्रों ने उन्हें छात्र नेता के रूप में पेश कर दिया। उनके साथ युवाओं का भारी जनसैलाब हो गया और वर्ष 1979 में उन्होंने भारी रिकॉर्ड के साथ छात्र संघ चुनाव में जीत हासिल की।
सम्पूर्ण पूर्वांचल के 8-10 जिलों में इस युवा नेता के नाम का एक शोर सा मच गया। कुश्ती हो या दंगल, दौड़ हो या घुड़सवारी, गांव-गांव में बृजभूषण शरण सिंह के नाम का शोर हो गया। इसी बीच माता पिता ने वर्ष 1980 में केतकी देवी से विवाह तय कर दिया।
गोंडा के राजा कौशलेन्द्र दत्त राम पांडे ने इनको राजनीति में सक्रिय रूप से आने की सलाह दी। ओजस्वी विचारों से ओत-प्रोत बृजभूषण शरण सिंह ने 1987 में गन्ना समिति के डायरेक्टर का प्रथम चुनाव लड़ा, जिसमें मात्र 33 वोट थे। राजा ने एवं प्रशासन से मिलकर 27 वोटरों को अपने कब्ज़े में कर लिया, लेकिन जब चुनाव की मतगणना हुई तो 27 वोट बृजभूषण शरण जी को मिले और मात्रा 6 वोट उनके प्रतिद्वंदी को मिले।
1988 में दूसरा चुनाव ब्लॉक प्रमुख का लड़ा जिसमें मात्र 1 वोट से उनको हार का सामना करना पड़ा।
1989-1990 में "स्थाननीय निकाय" (विधान परिषद्) सदस्य के चुनाव लड़ने की मन में ठानी और उसी समय गोंडा के राजा (पांडे जी) बृजभूषण शरण सिंह को पुत्रवत मानते थे। उनसे सलाह लेने के लिए बृजभूषण जी उनके पास पहुंचे। पांडे जी स्वयं जनता दाल में पुरानी विचारधारा के नेता थे। पांडे जी ने इन्हें सलाह दी की आप भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ो। अगर आपको बीजेपी चुनाव लड़ाती है तो आप लड़ो, क्योंकि गोंडा में हिन्दू नेता की जरूरत है। बृजभूषण शरण सिंह ने उस समय लोकसभा चुनाव में जनता दल की मदद की थी। पहला चुनाव और वही क्षण था कि बृजभूषण शरण सिंह पहली बार भाजपा के संपर्क में आए और विधान परिषद का चुनाव लड़ा। बड़े जोर-शोर से विधान परिषद् चुनाव लड़ा और मात्र 14 वोट से चुनाव हार गए लेकिन वो हार कोई साधारण हार नहीं थी वहीं जन लोकप्रिय नेता का जन्म हुआ।
उसी दौरान रामजन्म भूमि आंदोलन जोर पकड़ रहा था। बृजभूषण सिंह गोंडा के साथ-साथ अयोध्या के साधु संतों में बहुत लोकप्रिय थे। विद्यार्थी जीवन में ही उनके सम्बन्ध स्वर्गीय रामचंद्र परमहंस, महान नित्य गोपान दास, पहलवानों में हरिशंकर दास, हनुमान गढ़ही के स्वामी ज्ञान दास, धर्म दास, और लगभग सभी साधु संतों का आशीर्वाद इन्हें प्राप्त था और इसलिए रामजन्म भूमि आंदलन में देखते ही देखते बृजभूषण शरण सिंह का नाम प्रचलित हो गया। यहाँ तक की लालकृष्ण अडवाणी की रथ यात्रा निकली और उन्हें बिहार में गिरफ्तार किया गया। उस समय फैज़ाबाद के प्रशासन ने बृजभूषण सिंह को एक महीने के लिए जेल में बंद कर दिया था। अडवाणी जी जब जेल से छूटे तो उन्होंने पहली यात्रा अयोध्या से शुरू की और उसमें गोंडा से फैज़ाबाद, फैज़ाबाद से अयोध्या घाट और अयोध्या से लखनऊ तक लालकृष्ण आडवाणी की गाड़ी में सारथी बनकर यात्रा के दौरान साथ रहे। बृजभूषण शरण सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर आंदोलन को संभाला।
भूषण की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 1991 में आनंद सिंह के खिलाफ बृजभूषण शरण सिंह को चुनाव लड़ाया गया और बृजभूषण शरण सिंह 1,13000 वोट से चुनाव जीतकर पहली बार गोंडा से लोकसभा सदस्य चुने गए और उसके बाद 1993 में विवादित "रामजन्म भूमि" ढांचा अयोध्या में गिराया गया तो लालकृष्ण आडवाणी सहित जिन 40 लोगों को मुल्ज़िम बनाया गया उसमें बृजभूषण भी शामिल थे। सीबीआई ने सबसे पहले बृजभूषण को गिरफ्तार किया।
इसी बीच राजनीतिक षडयंत्रों के कारण उन्हें 1996 में टाडा के तहत दिल्ली तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया। जिस मुक़दमे में कल्पनाथ राय सहित 14 लोग थे। हाई कोर्ट ने 13 लोगों को सजा दे दी। इस मुक़दमे में अकेले बृजभूषण शरण सिंह को बाइज़्ज़त बरी किया गया। टाडा में बंद होने के कारण बृजभूषण शरण सिंह की पत्नी केतकी देवी को बीजेपी ने गोंडा लोकसभा से टिकट दिया और केतकी देवी ने लगभग 80,000 मतों से आनंद सिंह को भारी मतों से हराया।
1999 में पार्टी ने बलरामपुर लोकसभा से बृजभूषण शरण सिंह को प्रत्याशी बनाया। बलरामपुर लोकसभा से अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि मानी जाती थी, लेकिन लगातार दो बार से बलरामपुर लोकसभा से तथाकथित बाहुबली रिज़वान खान चुनाव जीत रहे थे। कहीं न कहीं ये बात बीजेपी के शीर्षस्थ नेताओं को चुभ रही थी कि अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि से पार्टी का कोई प्रत्याशी जीत कर नहीं आता है। इसलिए बीजेपी ने बृजभूषण शरण सिंह को पार्टी का प्रत्याशी बनाया और बृजभूषण शरण सिंह ने 54,000 वोट से जीत हासिल की
पुनः 2004 में चौदहवीं लोकसभा में बृजभूषण शरण सिंह ने जीत हासिल की। इसी बीच बसपा सुप्रीमो मायावती जी ने गोंडा का नाम बदलकर "लोकनायक जयप्रकाश नारायण नगर" रखने की घोषणा कर दी थी। लेकिन बृजभूषण शरण सिंह ने भारी जनसैलाब के बीच उनका विरोध किया। तत्काल उसी सभा में निवर्तमान मुख्यमंत्री मायावती से इन्होंने अपना विरोध दर्ज कराया और विरोध स्वरूप एक जन आंदोलन खड़ा किया और सारी स्थिति से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से हताक्षेप करने की मांग की और अटल जी के सहयोग से मायावती को अपनी घोषणा वापस लेनी पड़ी। वहीं से यह आंदोलन बढ़ता चला गया, आखिर इनकी मेहनत रंग लाई और गोंडा का नाम नहीं बदला गया। लेकिन इस घटना के कारण पार्टी में कुछ मतभेद पैदा हो गए, क्योंकि गोंडा का नाम मायावती ने स्वयं नहीं बदला था। उनसे बीजेपी के कुछ विचारधारा के लोगों ने करवाया था। इसी कारण से मतभेद इतने बढ़ गए कि इनको पार्टी छोड़नी पड़ी और 2009 में समाजवादी पार्टी से कैसरगंज लोकसभा चुनाव लड़ा और 63,000 वोट से दोबारा अपनी लोकप्रियता के चलते बृजभूषण ने विजय हासिल की। लेकिन समाजवादी पार्टी से इनके विचार मिलते नहीं थे। इसलिए चुनाव के लगभव 6 महीने पूर्व तत्कालीन उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की और सपा से इस्तीफा दे दिया और फिर पुनः 2014 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो कैसरगंज से 73,000 की भारी बहुमत से विजय हासिल की।
1991 | दसवीं लोकसभा के लिए निर्वाचित सदस्य, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति सदस्य, परामर्शदात्री समिति, रेल मंत्रालय |
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1999 | 13वीं लोक सभा के लिए पुन: निर्वाचित (दूसरी बार) |
1999-2000 | सदस्य रेल संबंधी स्थाियी समिति सदस्य, श्रम संबंधी स्थायी समिति सदस्य, लोक लेखा समिति |
2000-2004 | सदस्य, परामर्शदात्री समिति, रेल मंत्रालय |
2004 | चौहदवीं लोक सभा के लिए पुन: निर्वाचित (तीसरी बार) सदस्य, लोक लेखा समिति सदस्य, गृह मंत्रालय संबंधी स्थायी समिति सदस्य, परामर्शदात्री समिति, रक्षा मंत्रालय |
5 अगस्त. 2006 | सदस्य, गृह मंत्रालय संबंधी स्थायी समिति |
5 अगस्त 2007 | सदस्य, गृह मंत्रालय संबंधी स्थायी समिति |
1 मई 2008 | सदस्य, प्राक्कलन समिति |
2009 | पंद्रहवी लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित (चौथी बार) |
6 अगस्त 2009 | सदस्य, प्राक्कलन समिति |
31 अगस्त. 2009 | सदस्य, मानव संसाधन विकास संबंधी स्थायी समिति |
1 मई 2010 | सदस्य, प्राक्कलन समिति |
9 जून. 2013 | सदस्य, आवास समिति |
15 मार्च 2014 | पंद्रहवी लोक सभा से त्यागपत्र दिया |
मई, 2014 | सोलहवीं लोकसभा के लिए पुन:निर्वाचित (पांचवी बार) |
1 सितम्बर, 2014 | सदस्य, सभा की बैठकों से सदस्यों की अनुपस्थिमति संबंधी समिति सदस्य, खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति सदस्य, परामर्शदात्री समिति युवा मामलों और खेल मंत्रालय |
ओजस्वी वाणी एवं चुम्बकीय व्यक्तित्व वाले बृजभूषण शरण सिंह को लेखन, गायन एवं साहित्य से विशेष लगाव है। अपने भाषणों में अक्सर गीत, कविताएं सुनाते हैं। इसलिए पूरे उत्तर प्रदेश में इनके भाषण बहुत प्रचलित हैं।
सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने पहले नारा दिया ‘हरा भरा गोंडा’ और इन वाक्यों को काफी हद तक पूरा करके दिखाया। गोंडा के अलावा वह आसपास के सभी जिलों में अब तक 5 लाख से अधिक पेड़ स्वयं लगा चुके हैं। चूंकि बचपन से प्रकृति से इनको विशेष लगाव रहा है। 50 लाख पेड़ अब तक ये अपनी प्रेरणा से लोगों से, कार्यकर्ताओं से लगवा चुके हैं। इनका पेड़ लगवाने का बड़ा ही अनूठा अंदाज है। कार्यकर्ता को कहते हैं कि कल आपके घर चाय पर आएंगे और अपने परिवार के साथ पेड़ लगाने को आप तैयार रहना।
घर घर जाकर वृक्षारोपण की इस मुहिम को दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ा रहे हैं। वह 50,000 पेड़ प्रतिवर्ष बाँटते हैं। यही वजह है कि पूर्वांचल की जिस बंजर ज़मीन पर कीकड़ हुआ करती थी, आज वहां लाखों प्रकृति प्रेमी प्रकृति को बचाने के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इस मिशन को 51 संस्थाएं उनका साथ दे रही हैं।
वो कहते हैं कि वृक्ष न केवल धरती को उपजाऊ बनाते हैं, बल्कि हमारे जीवन में भी चैतन्यता उत्पन्न करते हैं। यदि हम अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करना चाहते हैं तो हमें न केवल अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए, बल्कि उनका पालन-पोषण और रक्षण भी करना चाहिए। हवा, पानी और मिट्टी का प्रदूषण वृक्षों की बढ़ोतरी से ही दूर हो सकता है।
बृजभूषणशरण सिंह ने सामाजिक कार्यों में सक्रीय नन्दपरी नगर महाविद्यालय की स्थापना सामाजिक कार्यों के विरूद्ध 1993 में मातृ रक्षा रथ यात्रा निकालकर जनजागरूकता अभियान आरम्भ किया। सामंती भू-माफिया के विरूद्ध आन्दोलन शुरू किया और निर्धनों एवं पात्र लोगों को लीज के आधार पर भूमि आवंटन प्रक्रिया को सफल बनाया। निर्धन परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
उनका शौक ऐसी पुस्तकें पढ़ना हैं जो राष्ट्रीय भावनाएं जागृत करें तथा संगीत एवं गीत सुनना, कविताएं लिखना, सामाजिक कार्य, संगीत, खेल और पढ़ना, खाली समय में किए जाने वाले अहम कार्यों में से हैं।
कजाखस्तान, कोरिया, रूस, सिंगापुर , स्कॉटलैंड, थाईलैंड और यू.के, स्पेन , रियो एवं लंदन।
50 से अधिक शिक्षण संस्थानों के साथ सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। जहां 1.5 लाख से अधिक विद्यार्थियों की खोज के लिए प्रतिभावान एवं खोज योजना भी आरम्भ की और इन विद्यार्थियों को नकद पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। देश में खेल को बढ़ावा देने के लिए कुश्ती, क्रिकेट, बैडमिंटन आदि के लिए खेल अकादमी शुरू की। इन अकादमियों में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है और इनमें से कुछ ने देश के लिए गौरव प्राप्त किया। 5 लाख से अधिक वृक्षारोपण में सक्रिय रूप से शामिल रहे।
लोकसभा सांसद बृजभूषण शरण सिंह सिर्फ खेलकूद में ही रुचि नहीं रखते, बल्कि शिक्षा के माध्यम से विकास का जज़्बा भी रखते हैं। उनका मानना है कि "अशिक्षित" समाज देश पर सबसे बड़ा कलंक है। अशिक्षा देश के विकास एवं स्वयं के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। शिक्षा किसी एक वर्ग या पीढ़ी के लिए नहीं है, बल्कि यह सबके लिए है। सामाजिक बदलाव में शिक्षा अहम भूमिका निभाती है। शिक्षा मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। वो कहते हैं कि शिक्षा मनुष्यों को दुर्गणों को पहचानने में मदद करती है। शिक्षा वास्तविक अर्थों में जीवन जीना सिखाती है। आज के वैज्ञानिक युग में शिक्षा प्राप्त किये बिना उन्नति होना असंभव है। शिक्षा के महत्व को देखते हुए इसे अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है, जिसके चलते उन्होंने सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र में ही नहीं बल्कि अन्य जगहों पर भी विद्यालयों, संस्थानों का निर्माण किया और शिक्षा के जरिये देश के विकास की ओर कदम बढ़ाया। उच्च स्तर के संस्थानों का गठन किया जिसमें पुस्तकालय, प्रायोगिक कक्षाओं के लिए लैब, खेलकूद के लिए मैदान सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
विद्यालय में निर्धन छात्रों को प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति भी उपलब्ध कराई जाती है। मेधावी छात्रों का प्रतिवर्ष सम्मान भी किया जाता है। बोर्ड की कक्षाओं में गणित और विज्ञान संकाय में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल देने की परंपरा भी है। लगभग 54 संस्थानों को स्थापित किया, जिसमें हर संस्थान में करीब 500-600 छात्र शिक्षित हो रहे हैं।